बागवानों को पीठ पर ढोना पड़ रहा सेब

कुल्लू। सेब सीजन चरम पर है लेकिन सड़कों की हालत खस्ता बनी हुई है। कई सड़क मार्ग महीने बाद भी दुरुस्त नहीं हुए हैं। ऐसे में बागवानों को सेब पेटियों को पीठ पर लाद कर ले जाना पड़ रहा है। गाड़ी में जहां एक सेब की पेटी पर एक से दो रुपये का खर्चा आता है, वहीं बागवानों को एक सेब पेटी पर 15 से 20 रुपये किराये के रूप में देने पड़ रहे हैं। यह हाल है रघुपुर घाटी की कुठेड़-करशाला सड़क का, जो करीब एक माह से भूस्खलन के चलते बंद पड़ी है। सड़क के प्रभावित होने से इलाके की फनौटी तथा लगौटी पंचायत के करशाला, बनाला, फनौटी, जुहड़, डोहाड़, लोट, दपांदा आदि गांवों के बागवानों को सड़क होने पर भी जेब ढीली करनी पड़ रही है। हालांकि, इस संदर्भ में लोगों ने लोक निर्माण विभाग से कई बार सड़क को दुरुस्त करने की बात कही, लेकिन कोई भी ध्यान नहीं दिया गया। इसका खामियाजा उपरोक्त गांवों के सैकड़ों के बागवानों को भुगतना पड़ रहा है। बागवान जगदीश, शेर सिंह, हीरा लाल, आलम चंद, बालक राम, रमेश चंद तथा लाल चंद ठाकुर ने कहा कि सड़क बंद होने से उन्हें 15 से 20 रुपये प्रति पेटी चूना लग रहा है। जगदीश चंद और शेर सिंह का कहना है कि अगर सड़क बहाल होती तो उन्हें गाड़ी में एक से दो रुपये ही भाड़े के रूप में देने पड़ते, लेकिन बंद सड़क के चलते उन्हें भारी चूना लग रहा है। उन्होंने कहा कि एक ओर सेब की फसल अपेक्षा के मुकाबले कम है तो दूसरी तरफ सड़क होने पर भी दो किलोमीटर तक सेब की पेटी को पीठ पर ढोना पड़ रहा है। उधर, लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता अनिल शर्मा ने कहा कि कुठेड़-करशाला सड़क को बहाल करने की भरपूर कोशिश की गई थी, लेकिन लगातार बारिश से सड़क बहाली के काम में रुकावट पैदा हो गई। उन्होंने कहा कि अब मौसम खुल गया है और मशीनरी मौके पर भेज कर इसे जल्द यातायात के लिए बहाल कर दिया जाएगा।

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